मेरा क्या दोष था…? ना मैंने तो कुछ बोला था,
में तो नादान एक बच्ची हु, क्यों तूने मुझे दबोचा था,
अभी तो में स्कूल में, लिखा पढ़ना सिख रही हु,
आपको तो में अंकल केहके, बड़े प्यार से बुला रही थी,
बच्ची हु सबके आँगन की, बचपन मेरा अभी न गुज़रा,
आप को ये क्या हुवा जो, आपने मुझे न कंही का छोड़ा,
प्यार से मम्मा मेरी, मुझे गुड़िया केहके बूलाती थी,
पापा मेरे बड़े प्यार से, अपनी कंधे पे बिठा ते थे,
बुरा किसीका न मैंने सोचा, न मैंने ऐसा काम किया,
सोचा करती कब हो जावु बड़ी, जो दुनियाको में जा शकु,
पर आज मेरे बचपन में ही, मैंने बड़े लोगो को जान लिया,
अपने घरमें भी कोई बेटी, कोई माँ, कोई बहना तो होगी ना.!!
न जाने किसको जनम दिया, न आपकी माँ को भी तो पता होगा,
हैवानियत के हेवान को उसने, अपने ही कुख में रख्खा था,
आज पता चला उस माँ को, उसने अपने ही बच्चे को खोया था,
मुझे न कोई सिक्वा हे, क्यों की में तो नादाँन अब्भी एक बच्ची हु,
कल ये अगर होगा ये आपकी बेटी से, जो सब कुछ मेरे साथ हुवा,
क्या करोगे एक पापा होके...? क्या कहोगे के पति होके ....?
में दुवा करती हु एक लड़की होके, ये गिनोनापन किसीसे न हो,
सब बच्ची, सब लडकिया, अपना सर उंच्चा करके जिए,
आज ये हे मेरी जुबानी, न बनाना तू किसी और की.
- विरल गज्जर…"राही"
२४/११/२०१४